ग़ज़ब है दौर-दौरा अब ज़माने में जहालत का सबक़ सीखा नहीं जाता बुज़ुर्गों की नसीहत का नसब इंसान का क्या है अगर आदत न हो अच्छी शरीफ़ इंसाँ वही है जिस में जौहर हो शराफ़त का ग़रज़ क्या है मिरी तक़दीर को पूछे जो ये मुझ से तलबगार आबरू का है यहाँ तू या ज़लालत का इक अरमाँ कम हुआ जब एक दुश्मन कम हुआ मेरा सबक़ तू ने दिया ऐ बे-उमीदी मुझ को राहत का सख़ी दुनिया में अब ऐसा नहीं जैसा कि हातिम था यूँ चर्चा होता आया है बहुत उस की सख़ावत का हुए आलात जंग के इस क़दर ईजाद दुनिया में ज़माने में नहीं है दौर-दौरा अब शुजाअ'त का अदब की महफ़िलें आबाद हैं दम से हमारे ही हमारा बाग़ है उर्दू अदब 'बासिर' फ़साहत का