घुल सी गई रूह में उदासी रास आई न हम को ख़ुद-शनासी हर मोड़ पे बे-कशिश खड़ी है इक ख़ुश-बदनी ओ कम-लिबासी लालच में परों के पैर छूटे अब रख़्त-ए-सफ़र है बे-असासी नफ़्स-ए-मज़मूँ इसी में है गो मज़मून-ए-नफ़स है इक़तिबासी आई भी तो क्या निगार-ए-ताबीर ओढ़े हुए ख़्वाब की रिदा सी जादू सा अलम का कर गई 'साज़' उन आँखों की मुल्तफ़ित उदासी