इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ इक घर की हिफ़ाज़त पर मामूर किया जाऊँ अपने से बिछड़ने की कुछ फ़िक्र नहीं लेकिन ऐसा न हो उस से भी अब दूर किया जाऊँ इक याद से मस हो कर ज़ंजीर पिघल जाए इक गुल की मोहब्बत से मख़मूर किया जाऊँ ऐसा न हो दुनिया की वुसअ'त से निकलते ही अपने में सिमटने पर मजबूर किया जाऊँ ऐ रात अगर मैं भी इक तेरा सितारा हूँ सूरज के निकलते ही बे-नूर किया जाऊँ ऐसा हो कि इक लम्हा मेरी भी गवाही दे ऐसा हो कि इक दिल का दस्तूर किया जाऊँ