किस मंज़र में कैसे मंज़र उग आते हैं ख़्वाब उगाना चाहूँ पत्थर उग आते हैं ये ना-मुम्किन है फिर भी लगता है जैसे क़ैद में वक़्त से पहले ही पर उग आते हैं मौसम का ए'जाज़ है या जादू है कोई रातों-रात दरख़्तों पर घर उग आते हैं पूरे चाँद की रात समुंदर नर्म हवाएँ सत्ह-ए-आब पे क्या क्या पैकर उग आते हैं इश्क़ में क़ामत का यूँ ध्यान रखा जाता है गर्दन कट जाती है तो सर उग आते हैं उस के नाम का नक़्क़ारा बजते ही 'सैफ़ी' चारों-जानिब दर्द के लश्कर उग आते हैं