ग़ुंचा-ओ-गुल की जुस्तुजू न रही दिल में अब कोई आरज़ू न रही कोई ऐसा भी होगा दुनिया में जिस को दुनिया की आरज़ू न रही कर दिया चश्म-ए-मस्त ने मदहोश हाजत-ए-साग़र-ओ-सुबू न रही यूँ मैं बैठा हूँ मुतमइन हो कर जैसे मंज़िल की जुस्तुजू न रही अब वो लाए हैं साग़र-ओ-मीना मय-कशी की जब आरज़ू न रही हसरत-ए-दीद के सिवा 'अख़्तर' न रही कोई आरज़ू न रही