पीने पे लगा कर पाबंदी दुश्नाम की बातें करते हैं

पीने पे लगा कर पाबंदी दुश्नाम की बातें करते हैं
ये ज़ाहिद-ओ-आबिद मस्जिद में ख़ुद जाम की बातें करते हैं

क्यों आज हैं वो घबराए हुए इल्ज़ाम की बातें करते हैं
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से पहले अंजाम की बातें करते हैं

जब मेरी वफ़ा मश्कूक नहीं फिर बात ये कैसी होती है
महफ़िल में बुला कर आख़िर क्यों इल्ज़ाम की बातें करते हैं

क्या ग़ुंचा-ओ-गुल से निस्बत है बे-कार है ज़ीनत गुलशन की
काँटों पे बसर करने वाले आराम की बातें करते हैं

जब राज़-ए-मोहब्बत खुलने से तौहीन-ए-मोहब्बत होती है
क्यों अश्क-ए-नदामत आँखों में इल्ज़ाम की बातें करते हैं

किस तरह गुज़ारे हिज्र का दिन ये बात न पूछो 'अख़्तर' से
वो सुब्ह की बातें क्या जानें जो शाम की बातें करते हैं


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