ग़ुंचा-ओ-गुल को सूखा सूखा मैं भी देखूँ तू भी देख नज़्म-ए-गुलिस्ताँ बदला बदला मैं भी देखूँ तू भी देख कौन है कितने पानी में ये राज़ अभी खुल जाएगा घर से निकल कर तन्हा तन्हा मैं भी देखूँ तू भी देख बिखरी हुई हर सम्त चमन में किस के बदन की ख़ुशबू है गोशा गोशा महका महका मैं भी देखूँ तू भी देख नज़्र-ए-तलातुम हो गई शायद कश्ती-ए-दिल ये कहती है जोश-ए-तलातुम ठंडा ठंडा मैं भी देखूँ तू भी देख बाम पे अपने जल्वा-फ़गन हैं बे-पर्दा वो शायद आज चाँद को 'क़ासिद' फीका फीका मैं भी देखूँ तू भी देख