घुप अंधेरे में उजालों की तरह मिलता है हाए वो ग़ैर जो अपनों की तरह मिलता है अपने रहते हैं किनारों की तरह दूर ही दूर ग़ैर अब टूट के मौजों की तरह मिलता है कौन कहता है कि मैं भूल गया हूँ उस को मेरी आँखों से जो ख़्वाबों की तरह मिलता है हुस्न इस दौर में अर्ज़ां है सर-ए-कूचा-ओ-बाम इश्क़ अब पर्दा-नशीनों की तरह मिलता है वक़्त आईना-ए-किरदार-ओ-अमल है गोया यही दुश्मन यही यारों की तरह मिलता है कैसे कहिए कि यही चेहरा है असली चेहरा हर रिया-कार फ़क़ीरों की तरह मिलता है दिल जब इख़्लास की ख़ुशबू से महक उठता है लुत्फ़ नेकी में गुनाहों की तरह मिलता है हर तलबगार ये मेआ'र-ए-अता क्या जाने ग़म भी इस बज़्म में तोहफ़ों की तरह मिलता है न खुला 'ज़ब्त' की उफ़्ताद-तबीअत का तिलिस्म पारसा लगता है रिंदों की तरह मिलता है