गिला किसी से दिल-ए-सोगवार मत करना जो बे-सुकूँ है उसे बे-क़रार मत करना ख़िज़ाँ की ज़िद है कि ये कारोबार मत करना कली से फूल से ख़ुशबू से प्यार मत करना जुनूँ हज़ार सही अपना दामन-ए-किरदार दरीदा करना मगर दाग़-दार मत करना न मैं चराग़ न मैं आसमान का तारा सवाद-ए-शाम मिरा इंतिज़ार मत करना कहीं कहीं पे ख़मोशी भी जुर्म होती है हर इक जगह पे सुकूत इख़्तियार मत करना फ़रेब खाए हैं इतना कि दिल ये कहता है बहार में भी यक़ीन-ए-बहार मत करना उसी से जाती है इंसाँ की आबरू 'ज़ाकिर' ग़लत शिआ'र कभी इख़्तियार मत करना