कल जो ग़फ़लत में पड़े थे आज वो हुशियार हैं एक हम ही सो रहे हैं और सब बेदार हैं जाएज़ा लें वक़्त का माहौल पे रक्खें नज़र फ़िक्र-ओ-फ़न से काम लें हम आज के फ़नकार हैं चंद सिक्कों के एवज़ जो बेच देते हैं ज़मीर ऐसे ही कम-ज़र्फ़ दुनिया में ज़लील-ओ-ख़्वार हैं ये तो मुस्तक़बिल बताएगा तुम्हें अहल-ए-चमन तुम चमन-ज़ारों के वारिस हो कि हम हक़दार हैं काम ले होश-ओ-ख़िरद से ऐ अमीर-ए-कारवाँ हर क़दम पर राहज़न हैं मंज़िलें दुश्वार हैं वक़्त के झूटे ख़ुदा हम को झुका सकते नहीं अज़्म-ए-रासिख़ की क़सम हम भी बहुत ख़ुद्दार हैं तुम ने 'ज़ाकिर' उस से जब तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लिया ये शिकायत भी अबस है ये गिले बेकार हैं