गिला क्यों हो मिली हम को वफ़ा कम ज़माने से हमीं थे आश्ना कम ख़ुशामद कम तलब कम इल्तिजा कम विरासत में हमें ये सब मिला कम बयाँ करता फिरूँ हाल-ए-ग़म-ए-दिल मेरी आदत में ये शामिल रहा कम बुतों वाले बुतों से डर रहे हैं ख़ुदा वालों को है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा कम मिरे दामन पे हैं जिन की निगाहें वो शायद देखते हैं आइना कम कभी मैं पाँव फैला कर न सोया मिरे क़द से रही मेरी रिदा कम ज़बाँ पर 'एहतिशाम' आया तो उन की हुआ तो कुछ दिलों में फ़ासला कम