अहद-ए-रफ़्ता की लकीरों पे न चलते रहिए वक़्त के साथ ख़यालात बदलते रहिए ठोकरें खा के बहर-गाम सँभलते रहिए मंज़िल-ए-शौक़ भी मिल जाएगी चलते रहिए ग़ुंचा-ओ-गुल को ब-सद-शौक़ मसलते रहिए एहतियातन कभी काँटों पे भी चलते रहिए दोस्त बन बन के यूँही ज़हर उगलते रहिए आस्तीनों में मिरी शौक़ से पलते रहिए क़हक़हे बन के मिरे लब पे न ठहरे न सही अश्क बन कर मिरी पलकों पे मचलते रहिए शबनम ओ बर्फ़ की ठंडक है न फूलों की महक इश्क़ इक आग है इस आग में जलते रहिए आप यूँही निकहत-ओ-नूर के चश्मे बन कर ग़म की तारीक चटानों से उबलते रहिए मेरे गीतों का मधुर साज़ न बनिए लेकिन सोज़ बन कर मिरे नग़्मात में ढलते रहिए 'एहतिशाम' आप को जीने की तमन्ना है अगर ज़िंदगी के नए उन्वान बदलते रहिए