गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम अरे 'सानी' कहाँ घर आ गए तुम कहानी ख़त्म होने जा रही थी नया इक मोड़ ले कर आ गए तुम हँसी में टालने ही जा रहा था मिरी आँखों में क्यूँ भर आ गए तुम ज़माना ताक में बैठा हुआ था ज़माने भर से बच कर आ गए तुम मैं जी लूँगा इसी इक पल में जीवन कि जिस पल में मयस्सर आ गए तुम मिरे सीने पे अपना बोझ रखना अगर बाँहों में थक कर आ गए तुम दुआ में हाथ थकते जा रहे थे अभी गिरते कि यकसर आ गए तुम हमारा ज़र्फ़ था सो चुप रहे हम मगर आपे से बाहर आ गए तुम बसा-औक़ात तुम को भूल रखा मगर यादों में अक्सर आ गए तुम अभी तुम से ही मिलने आ रहा था चलो अच्छा हुआ गर आ गए तुम मोहब्बत की वकालत कर रहे हो तो क्या 'सानी' से मिल कर आ गए तुम