गिरा पड़ा के न यूँ तार तार कर मुझ को By Ghazal << मैं कैसे मान लूँ कि इश्क़... अब दो-आलम से सदा-ए-साज़ आ... >> गिरा पड़ा के न यूँ तार तार कर मुझ को मिरे हवाले ही कर दे पुकार कर मुझ को मिरी तलाश में कौन आएगा मिरे अंदर यहीं पे फेंक दिया जाए मार कर मुझ को मैं जितना क़ीमती हूँ उतना बद-नसीब भी हूँ वो सो रहा है गले से उतार कर मुझ को Share on: