गिरते रहते हैं फिर सँभलते हैं फिर उसी रास्ते पे चलते हैं जलते हैं आग में बदन लेकिन दिल फ़क़त इश्क़ ही में जलते हैं एक मुद्दत से दिल के मंदिर में कुछ उम्मीदों के दीप जलते हैं रिज़्क़ देना उसी की क़ुदरत है पत्थरों में भी कीड़े पलते हैं मोम की तरह दिल भी पत्थर के वक़्त की धूप में पिघलते हैं सिर्फ़ हालात ही नहीं प्यारे हाँ ख़यालात भी बदलते हैं कोई ख़ामोश भी रहे कितना दिल में जज़्बात तो मचलते हैं मक्र तनवीर जिस का शेवा है ऐसी दुनिया से दूर चलते हैं