वो हुस्न-ए-बे-मिसाल कहाँ जल्वा-गर नहीं अपना क़ुसूर है हमें ताब-ए-नज़र नहीं सुनते हैं चाँद रात को आया था बाम तक फिर इस के बाद क्या हुआ कुछ भी ख़बर नहीं उस के सरापा हुस्न की तारीफ़ क्या करें सर-ता-क़दम परी है फ़क़त उस के पर नहीं बिखरे हुए हैं बाल सितारों की छाँव में सज्दे में गिर पड़ेंगे सितारे ये दर नहीं गुज़री थी रात उस के क़दम पर पड़े पड़े देखी फिर उस के बाद कभी फिर सहर नहीं उस की 'फ़राज़' एक झलक भी किसे नसीब एक तुम के तुम ने देखा उसे रात भर नहीं