गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ डूबती है भँवर में जा कर नाव न गली अपनी वाँ कभी खिचड़ी नित पकाते रहे ख़याली पोलाव दिल है ऐ नाला जूँ कबाब-ए-वरक़ आँच कम दे ये खा न जाए ताव बोसा लेते में काट खाते हो क्या तुम्हारा बुरा पड़ा है सुभाव जी पे याँ बन रही है ये तो कहो आज कीधर चले हो कर के बनाव क्यूँ के रख्खूँ क़दम गली में तिरी वाँ तो पड़ता नहीं है अपना हवाव आतिश-ए-मेदा को नहीं सेरी जूँ जहन्नम करे है लाव ही लाव दिल जो मैं गुम किया तो तुम को क्या यारो इस बात का करो न चुवाव थी शब-ए-वस्ल पर ख़याल के साथ हम ने दिल से निकाले क्या क्या चाव दह-ए-दिल है तअल्लुक़े में तिरे ख़्वाह ऊजड़ कर इस को ख़्वाह बसाओ मरहम-ए-लुत्फ़ मुँह न मोड़ियो तो अभी आले हैं सब जिगर के घाव ये ज़मीं भी है तुर्फ़ा मअनी-ख़ेज़ 'मुसहफ़ी' इक ग़ज़ल तो और सुनाओ