गो ब-नाम इक ज़बान रखती है शम्अ

गो ब-नाम इक ज़बान रखती है शम्अ
कब तिरा सा बयान रखती है शम्अ

तेरे मुखड़े का सा नमक मालूम
एक फीकी सी आन रखती है शम्अ

सरफ़रोशी के मुख़्तरा हम हैं
गो अब ऊँची दुकान रखती है शम्अ

दाग़ पर दाग़ उठाए दिल की तरह
कब ये ताब-ओ-तवान रखती है शम्अ

रोवे गो तूदा तूदा कब ऐसे
दीदा-ए-ख़ूँ-फ़िशान रखती है शम्अ

आह इस दाग़-ए-दिल से जिस से कि दस्त
नित सू-ए-आसमान रखती है शम्अ

क्यूँकि परवाना रश्क से न जले
सब के आगे फ़ुलान रखती है शम्अ

खोल मुखड़ा कि है ये मुझ को यक़ीं
तुझ से दावा गुमान रखती है शम्अ

ये दिल अफ़्सुर्दा वाए क़िस्मत-ए-बद
सोज़ ता-उस्तुख़्वान रखती है शम्अ

रातों जागी है मिस्ल 'क़ाएम' की
तब ये सोज़-ए-निहान रखती है शम्अ


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