गो चारों तरफ़ बज़्म-आराईयाँ हैं मगर मुझ को डसती ये तन्हाइयाँ हैं चलो इक दफ़ा दूरियाँ फिर बढ़ा लो अगर मुझ से मिलने में रुस्वाइयाँ हैं मुसलसल मिरे दिल में जो बज रही हैं ये तेरी मोहब्बत की शहनाइयाँ हैं मिरे साथ चलती रहें पै-ब-पै जो वो तेरी वफ़ाओं की परछाइयाँ हैं