मिरे ख़ुदा न मुझे ज़ौक़-ए-ख़ुद-नुमाई दे जो देना है मुझे तौफ़ीक़-ए-पारसाई दे मिले जो बेटा तो अकबर सा जाँ-निसार मिले जो भाई दे मुझे अब्बास जैसा भाई दे भटक रहा हूँ मैं इक बर्ग-ए-ख़ुश्क की मानिंद ख़ुदा किसी को न मुझ जैसी बे-नवाई दे मिरी निगाह में जल्वे तिरे सिमट आएँ जहाँ मैं जाऊँ वहीं तू ही तू दिखाई दे तिरी रज़ा की है ख़्वाहिश क़दम क़दम पे मुझे जो चाहते हैं ख़ुदाई उन्हें ख़ुदाई दे