गो दूर हो चुका हूँ यारान-ए-अंजुमन से लेकिन मफ़र नहीं है एहसास की चुभन से हुस्न-ए-नज़र का जादू सर चढ़ के बोलता है अस्नाम-ए-मर्मरीं भी लगते हैं सीम-तन से ग़ुंचा ही फूल बन कर जान-ए-चमन हुआ है मैं ने यक़ीं की दौलत पाई है हुस्न-ए-ज़न से आज उन के रास्तों में काँटे बिछे हुए हैं कल तक जो खेलते थे रंगीनी-ए-चमन से जैसे चमन से निकहत जैसे सदफ़ से मोती ऐसे जुदा हुआ हूँ मैं जन्नत-ए-वतन से मैं राज़-ए-रंग-ओ-बू से ना-आश्ना नहीं हूँ मुझ को गिला भी कब है फूलों की अंजुमन से मेरी ग़ज़ल 'उरूज' इक तस्वीर-ए-अस्र-ए-नौ है मैं ने उसे सँवारा तहज़ीब-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न से