गो हूँ वहशी प तिरे दर से न टल जाऊँगा हाँ मगर दश्त-ए-अदम ही को निकल जाऊँगा ताइर-ए-नामा-बर अपना यही कहता है कि आह रक़म-ए-शौक़ की गर्मी से मैं जल जाऊँगा जल्द ऐ काश जतावे उसे जोबन उस का फिर हो किस काम के तुम जब कि मैं ढल जाऊँगा आज गो उस ने ब-रुस्वाई निकाला मुझ को गर यही दिल है तो फिर आप से कल जाऊँगा मशवरा कर के ये दिल कूचा-ए-जानाँ को चला अज़्म तो लाने का कीजो मैं मचल जाऊँगा गर यही आतिश-ए-उल्फ़त है तो मानिंद-ए-सिपंद आह में मुजमिर हस्ती से उछल जाऊँगा नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ मिरी वज़्अ से तुम इतना घबराओ न प्यारे मैं सँभल जाऊँगा वाए क़िस्मत कहे जब सब्र सा मूनिस ये बात तुझ पे देखूँगा बुरा वक़्त तो टल जाऊँगा जल्द ख़ू अपनी बदल वर्ना कोई कर के तिलिस्म आ के दिल अपना तिरे दिल से बदल जाऊँगा जी कहीं तू न फँसा वर्ना तिरे दाम से मैं आब-ए-ग़िर्बाल की मानिंद निकल जाऊँगा जूँ हिना अपने वो क़दमों से न लगने देंगे इस तमन्ना में अगर ख़ाक में रल जाऊँगा जाते जाते कफ़-ए-अफ़्सोस इसी हसरत में अश्क भर ला के दम-ए-नज़अ भी मल जाऊँगा जिन के नज़दीक है अंदाज़-ए-ग़ज़ल 'मीर' पे ख़त्म उन को 'जुरअत' मैं सुनाने ये ग़ज़ल जाऊँगा