गो ज़बानें लाख हों दिल की सदा तो एक है जितने हों अंदाज़ लेकिन मुद्दआ' तो एक है कुछ महाज़ों पर बहाएँ कुछ बहाएँ खेत में मुख़्तलिफ़ जा पर सही ख़ून-ए-वफ़ा तो एक है हर तरफ़ से इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में जाऊँगा क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन का मरहला तो एक है दार हो मक़्तल हो या हो तूर का जल्वा कहीं जज़्बा-ए-ज़ौक़-ए-मोहब्बत का सिला तो एक है मैं समझता हूँ ये दुनिया है हसीनों से भरी क्या करूँ ज़ौक़-ए-नज़र का मुद्दआ' तो एक है आह नाले दर्द-ओ-ग़म अख़्तर-शुमारी रात की ऐ मसीह-ए-वक़्त इन सब की दवा तो एक है दूर हों चारा-गरान-ए-वक़्त बस अब दूर हों 'अस्र' की तकलीफ़ का दर्द-आश्ना तो एक है