हम जो इक लहर में लहराते हुए झूमते हैं क्यूँ न ऐसा हो कि हम साथ तिरे झूमते हैं रक़्स-ए-दरवेश का ये सिलसिला दुनिया से न जोड़ हम किसी और ही लज़्ज़त के लिए झूमते हैं ऐसी मंज़िल पे ले आया है मिरा रक़्स मुझे अब कई सिलसिले भी साथ मिरे झूमते हैं डोल जाए न तिरे डोलने से परतव-ए-नूर तेरे हमराह कई शम्अ'-कदे झूमते हैं ज़रा देखो तो सही अहल-ए-मोहब्बत की तरफ़ कितनी सरमस्तियाँ आँखों में लिए झूमते हैं रौशनी राज़ है ऐसा कि समझ आने पर कितने सर घूमते हैं कितने दिए झूमते हैं मैं अकेला तो नहीं झूम रहा हूँ 'सय्यद' तारे भी साथ मिरे रात गए झूमते हैं