गो क़यामत से पेशतर न हुई तुम न आए तो क्या सहर न हुई आ गई नींद सुनने वालों को दास्ताँ ग़म की मुख़्तसर न हुई ख़ून कितने सितम-कशों का हुआ आँख उस संग-दिल की तर न हुई उस ने सुन कर भी अन-सुनी कर दी मौत भी मेरी मो'तबर न हुई साथ तक़दीर ने कभी न दिया कोई तदबीर कारगर न हुई चैन की जुस्तुजू रही दिन-रात ज़िंदगी चैन से बसर न हुई मुझ को मिलती न ऐ 'वफ़ा' मंज़िल अक़्ल क़िस्मत से राहबर न हुई