गो याँ न किसी को आए अफ़सोस हालत तो है अपनी जा-ए-अफ़सोस देते तो दिया में दिल को लेकिन चारा नहीं अब सिवाए-अफ़सोस हूँ कुश्ता मैं वाँ कि जिस जगह में कोई न किसी पे खाए अफ़सोस जूँ शम्अ अगर न सर धुनूँ में क्या काम करूँ वरा-ए-अफ़सोस चलते हुए अहल-ए-बज़्म ने याँ छोड़ा है मुझे बराए-अफ़सोस 'क़ाएम' वो अमल कि ब'अद तेरे इक ख़ल्क़ कहे कि हाए अफ़सोस