गोया है ताब-ए-इश्क़ में बीमार की तलब आ जा तो अब समझ के दिल-ए-ज़ार की तलब फिर चश्म वा करे है रुख़-ए-यार की तलब कि दीद को है फिर किसी दीदार की तलब और लम्स को है फिर उसी रुख़्सार की तलब अबरू करे है फिर से निगह-ए-यार की तलब फिर रख़्श को ख़याल के रफ़्तार की तलब बादा करे है फिर उसी सरशार की तलब फिर नूर को हुई है शब-ए-तार की तलब फिर आबला करे है सर-ए-ख़ार की तलब फिर काम को वही है रह-ए-दार की तलब फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब