गोया लटों की डोर से बाँधा हुआ है चाँद देखो स्याह ज़ुल्फ़ में कैसे फँसा है चाँद पूनम के बाद देखा नहीं सात दिन उसे मैं ने सुना है रूठ कर आधा हुआ है चाँद पहले जमाल-ओ-नूर की बातों में गुम हुआ फिर दाग़ दाग़ सुन के सिसकने लगा है चाँद भोले के सर पे भी यही गुम्बद पे भी यही तू क्यों सियासतों में उलझने लगा है चाँद अम्माँ खड़ी है पास में थाली परोस कर बरसों के बाद फिर मिरा मामा बना है चाँद