है जमा ख़ून रगों में कि रवाँ कुछ भी नहीं तुम से ये किस ने कहा है कि वहाँ कुछ भी नहीं कोई धड़कन की सी आवाज़ उठी सीने में जब कि हाथों से टटोला तो कहाँ कुछ भी नहीं क़ब्ल और बाद के मंज़र तो हुए हैं यकसाँ तुझ से पहले कि तिरे बाद जहाँ कुछ भी नहीं देख तन्हाई मुझे छोड़ गए यार सभी मुस्कुरा दे कि सिवा तेरे यहाँ कुछ भी नहीं फिर से बिर्हा में जला 'नूर' करिश्मा क्या है कोई अंगार न आतिश न धुआँ कुछ भी नहीं