गुफ़्तार बदल कर कभी किरदार बदल कर तक़दीर में यूँ जीत लिखी हार बदल कर अब 'मीर' के 'ग़ालिब' के वो उस्लूब कहाँ हैं अशआ'र कहे जाते हैं मेआ'र बदल कर सर-दर्दी के उन्वान सभी में हैं ब-कसरत हम ने तो यही पाया है अख़बार बदल कर होती है हर इक जंग में क्यों हार हमारी देखो तो कभी क़ाफ़िला सालार बदल कर तक़दीर की लिखी हुई तहरीर बदल दें उस शख़्स ने बात अपनी हर इक बार बदल कर अपनी भी तो रफ़्तार बदल कर कभी देखो क्या होगा भला वक़्त की रफ़्तार बदल कर मजबूर हैं लाचार हैं इस दौर में 'वाजिद' लाएँ कहाँ से हम दिल-ए-ख़ुद्दार बदल कर