गुज़र नहीं है किसी का तो रास्ता क्यों है जो रास्ता है तो महरूम-ए-नक़्श-ए-पा क्यों है हर एक शख़्स समझता है अजनबी फिर भी तुम्हारे घर का पता मुझ से पूछता क्यों है तुम्हारा शहर उजालों का शहर सुनते थे क़दम क़दम पे अँधेरों का सामना क्यों है वही सहर है वही शब वही है हंगामा मगर हयात का मंज़र उदास सा क्यों है मैं अपने वक़्त की तस्वीर बन गया तो नहीं हर आदमी मुझे इस तरह देखता क्यों है निगाह जब तिरी बीनाई खो चुकी अपनी तो ज़िंदगी तिरे हाथों में आइना क्यों है किसी से मिल के बिछड़ जाना उम्र भर को 'नसीब' ज़रा सी भूल की इतनी बड़ी सज़ा क्यों है