गुज़र रही है मगर ख़ासे इज़्तिराब के साथ ख़याल भी नज़र आने लगे हैं ख़्वाब के साथ तलाश में हूँ किसी खुरदुरे किनारे की निबाह अब नहीं होता हुबाब-ओ-आब के साथ शब-ए-फ़िराक़ है 'सिद्धार्थ' की तरह गुम-सुम हवास भी हुए रुख़्सत तिरे हिजाब के साथ तअल्लुक़ात का तन्क़ीद से है याराना किसी का ज़िक्र करे कौन एहतिसाब के साथ जुड़ी हुई है हर इक शख़्स की 'फ़ुज़ैल' यहाँ ग़रज़ किसी न किसी साहब-ए-निसाब के साथ