गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही कूचा-ए-यार में मदफ़न ही सही ख़ैर जो रंग नहीं है तो न हो तेग़ खींचो मिरी गर्दन ही सही क़ब्र-ए-बुलबुल पे चलूँ रोने को आज गुलज़ार में शेवन ही सही बुत तो वल्लाह बना लेंगे कभी शोर-ए-नाक़ूस बरहमन ही सही जोश-ए-वहशत है दिला नज्द को चल सैर करने के लिए बन ही सही शम्अ' तो यार चढ़ाता ही नहीं दाग़-ए-दिल क़ब्र में रौशन ही सही हाल कुछ मिरे गरेबाँ में नहीं ऐ जुनूँ दश्त का दामन ही सही कोई हम-चश्म तो हो ज़िंदाँ में हैरती दीदा-ए-रौज़न ही सही मिस्सी मालीदा दहन में है कलाम बोसा-हा-ए-ग़ुन्चा-ए-सौसन ही सही नासेहा उस की बुराई तो न कर न सही दोस्त वो दुश्मन ही सही गुल-रुख़ों से तो हुई क़त्अ उमीद 'मेहर' नज़्ज़ारा-ए-गुलशन ही सही