गुज़रना है जी से गुज़र जाइए लिए दीदा-ए-तर किधर जाइए खुले दिल से मिलता नहीं अब कोई उसे भूलने किस के घर जाइए सुबुक-रौ है मौज-ए-ग़म-ए-दिल अभी अभी वक़्त है पार उतर जाइए उलट तो दिया पर्दा-ए-शब मगर नहीं सूझता अब किधर जाइए इलाज-ए-ग़म-ए-दिल न सहरा न घर वही हू का आलम जिधर जाइए इसी मोड़ पर हम हुए थे जुदा मिले हैं तो दम भर ठहर जाइए कठिन हैं बहुत हिज्र के मरहले तक़ाज़ा है हँस कर गुज़र जाइए अब उस दर की 'अख़्तर' हवा और है लिए अपने शाम-ओ-सहर जाइए