गुल-ए-रंगीं मह-ए-कामिल कहाँ है मुझे आवाज़ दे ऐ दिल कहाँ है है ख़ुद गुमराह अक़्ल-ए-मस्लहत में जुनूँ से पूछिए मंज़िल कहाँ है हर इक शय इस मुहीत-ए-ज़िंदगी में फ़रेब-ए-मौज है साहिल कहाँ है न इठला ऐ नसीम-ए-सुब्ह-गाही ख़ुदा जाने मिरा अब दिल कहाँ है दर-ए-माज़ी जबीन-ए-हाल कब तक बता ऐ मेरे मुस्तक़बिल कहाँ है न मालूम ऐ सुकून-ए-कामरानी वो लुत्फ़-ए-सई-ए-ला-हासिल कहाँ है बहार आएगी अश्क-ए-सादा-रू पर अभी ख़ून-ए-जिगर शामिल कहाँ है वो दिल जिस को मयस्सर है हुज़ूरी असीर-ए-बज़्म-ए-आब-ओ-गिल कहाँ है जिसे समझा है 'फ़ैज़' आईना-ए-हक़ वो बे-अक्स-ए-रुख़-ए-बातिल कहाँ है