कुछ मुकद्दर सा सर-ए-बालीं तुझे पाता हूँ मैं ले चराग़-ए-सुब्ह से पहले बुझा जाता हूँ मैं कुश्ता-ए-ग़म को दम-ए-ईसा तो ज़िंदा कर चुका लीजिए अब उन के दामन की हवा लाता हूँ मैं जिस क़दर पामाल करते हैं वो राह-ए-इश्क़ में सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा और उभर आता हूँ मैं शम्अ' ने खींचे वो तस्वीर-ए-मआल-ए-ज़िंदगी हर नसीम-ए-सुब्ह के झोंके पे थर्राता हूँ मैं मै-कदा बिल्कुल हक़ीक़त है हरम सिर्फ़ ए'तिक़ाद मोहतसिब अब देखना ये है किधर जाता हूँ मैं सुब्ह-दम कुछ इस तरह दिल गोश-बर-आवाज़ था जब किसी ग़ुंचे ने चुटकी ली कहा आता हूँ मैं अब ख़ुदा मालूम दिल है किस मक़ाम-ए-इश्क़ पर वो जफ़ाओं पर जफ़ा करते हैं शरमाता हूँ मैं देखिए कब हो मयस्सर इशरत-ए-साहिल मुझे ज़िंदगी इक क़ुल्ज़ुम-ए-ग़म है बहा जाता हूँ मैं मोहतसिब ख़ौफ़-ए-शिकस्त-ए-साग़र-ए-रंगीं न पूछ जब कोई ग़ुंचा चटकता है लरज़ जाता हूँ मैं कुश्तगान-ए-यास को ऐ 'फ़ैज़' पैग़ाम-ए-हयात बरबत-ए-दिल पर ब-तर्ज़-ए-नौ ग़ज़ल गाता हूँ मैं