गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना काफ़ी है तसल्ली को मिरी एक नज़र भी ऐ अब्र क़सम है तुझे रोने की हमारे तुझ चश्म से टपका है कभू लख़्त-ए-जिगर भी ऐ नाला सद अफ़्सोस जवाँ मरने पे तेरे पाया न तनिक देखने तीं रू-ए-असर भी किस हस्ती-ए-मौहूम पे नाज़ाँ है तू ऐ यार कुछ अपने शब-ओ-रोज़ की है तुज को ख़बर भी तन्हा तिरे मातम में नहीं शाम-ए-सियह-पोश रहता है सदा चाक गरेबान-ए-सहर भी 'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात आई है सहर होने को टुक तू कहीं मर भी