गुल की ख़ूनीं-जिगरी याद आई फिर नसीम-ए-सहरी याद आई आज फ़रमान-ए-रिहाई पहुँचा आज बे-बाल-ओ-परी याद आई दुश्मन आबाद रहें जिन के तुफ़ैल अपनी आली-गुहरी याद आई जब किसी ने मिरी आँखें सी दीं तब मुझे दीदा-वरी याद आई साज़ जब टूट गए हम-नफ़सो अब तुम्हें नग़्मागरी याद आई कभी रौशन जो हुई शम-ए-बहार बाग़ की बे-बसरी याद आई कम न थे गर्दिश-ए-दौराँ के गिले क्यूँ तिरी कम-नज़री याद आई पहले मा'लूम न था दिल का मक़ाम अब तुम्हें शीशा-गरी याद आई आज अरबाब-ए-ख़िरद को 'आबिद' मेरी शोरीदा-सरी याद आई