गुल ने जब इख़्तियार की आवाज़ और महकी बहार की आवाज़ कब सुनेंगी हमारे रिश्तों की सूखी शाख़ें बहार की आवाज़ आने वाला है कौन सा मौसम गुल से आती है ख़ार की आवाज़ पत्थरों पर असर नहीं करती झील दरिया चिनार की आवाज़ जाने किस सम्त किस समुंदर में सो गई आबशार की आवाज़ कर गई है समाअ'तें मजरूह टूटते ए'तिबार की आवाज़ कल इन्हीं बाम-ओ-दर से आएगी मेरे नक़्श-ओ-निगार की आवाज़ अब तो आने लगी है आँखों से नींद के इंतिज़ार की आवाज़ तू मुक़र्रिर है किस ज़माने का तुझ से आती है दार की आवाज़ ख़ंजरों के बदल गए लहजे इक ग़रीब-उद-दयार की आवाज़ क़ाफ़िले का पता बताए कौन चुप है सहरा ग़ुबार की आवाज़ तेरे हर शे'र का है ऐ 'काज़िम' हर्फ़-ए-तन्हा हज़ार की आवाज़