ख़ून के छींटे सर-ए-सहन-ए-गुलिस्ताँ देखे मैं ने ऐसे भी कई जश्न-ए-बहाराँ देखे मुझ को हर दर्द-ए-मसीहा की ख़बर है लेकिन किस को फ़ुर्सत है मिरा हाल-ए-परेशाँ देखे बेबसी मैं तुझे किस नाम से ता'बीर करूँ आशियाँ जलते रहे और निगहबाँ देखे आप ने जलते मकानों की कहानी ही सुनी मेरी आँखों ने तो जलते हुए इंसाँ देखे ख़ुद को तूफ़ान से महफ़ूज़ समझने वालो मैं ने साहिल से भी उठते हुए तूफ़ाँ देखे ख़ाक होगा उसे अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ 'अनवर' रह के साहिल पे जो मौजों को परेशाँ देखे