गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ मैं अपने ख़्वाब लिखना चाहता हूँ मोहब्बत से भरा है दिल का दरिया मगर पायाब लिखना चाहता हूँ लिखूँ कैसे कि सारे शेर तुम पर बहुत नायाब लिखना चाहता हूँ मैं अपना और तुम्हारा नाम इक दिन कनार-ए-आब लिखना चाहता हूँ मैं ख़ुद को बादशाह-ए-इश्क़ लिख कर तुम्हें बे-ताब लिखना चाहता हूँ मैं सारे ज़ख़्म जो तुम से मिले हैं उन्हें शादाब लिखना चाहता हूँ मैं 'साबिर' ज़िंदगी के सारे मंज़र पस-ए-गिर्दाब लिखना चाहता हूँ