गुल तिरे मुख की फ़िक्र में बीमार जीव बुलबुल का तुझ क़दम पे निसार गुल कूँ ऐ शोख़ मुख तनिक दिखला कि ख़िज़ाँ कर दिखा दे उस कूँ बहार मस्त से दिल कूँ है हज़र लाज़िम नैन तेरे बहुत हुए सरशार इस गली में क़दम करम सूँ धर कि करूँ हर क़दम पे जीव निसार मारती मुझ कूँ ऐ कमाँ अबरू ये पलक तीर ओ ये निगह तलवार हिज्र में तेरे आह करता है दिल-ए-आशिक़ नहीं है टुक बेकार क्या करे तुझ से पापी सूँ 'फ़ाएज़' सीना ग़म सूँ है तेरे आबला-दार