ने अमीरों में ने वज़ीरों में इश्क़ के हम तो हैं फ़क़ीरों में कोई आज़ाद हो तो हो यारो हम तो हैं इश्क़ के असीरों में बंदा-ए-इश्क़ हक़ है अपने यहाँ ताज-दारों में तख़्त-गीरों में फ़ुर्क़त-ए-यार की भरी है बू नाला-हा-ए-नय ओ नफ़ीरों में ज़न-ए-दुनिया मुरीद किस की नहीं हम भी इस क़हबा के थे पीरों में अब तो ख़ामोश हैं क़फ़स में कभी नग़्मा-संजाँ थे हम-सफ़ीरों में हम को तू वाजिब-उल-वजूद मिला हम कबीरों में हम सग़ीरोें में कुंज-ए-उज़्लत में यार को पाया ने क़लीलों में ने कसीरों में शुक्र-ए-हक़ कीजिए कि है 'मातम' अपने दिलदार दिल-पज़ीरों में