गुलों के जिस्म पे रंगों की ताज़गी देखो हवस की तेज़ निगाहों में तिश्नगी देखो है आसमान पे तारी मुहीब सन्नाटा ज़मीं की गोद में फ़ितरत की नग़मगी देखो तख़य्युलात का दरिया न टूट जाए कहीं हवा के दोष पे सहरा की तिश्नगी देखो ये मेरी तर्ज़-ए-बयाँ का कमाल है यारो हुजूम-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र की शिकस्तगी देखो खिले हैं बाग़ में 'जामी' बहुत गुलाब मगर ख़ुद अपने ज़ौक़ के गुल की शगुफ़्तगी देखो