गुलों की आँख में काँटा पड़ा है ये सहराई सफ़ीने आ पड़ा है लहू की छब है सीने की रवानी पे इस छींटे में कुल दरिया पड़ा है पलट आए हैं ले कर अर्श से ख़ाक ये सीधा रम हमें उल्टा पड़ा है ज़मीं पर आ गिरा महताब का हाथ सितारों का जिगर टूटा पड़ा है हवाई शहर में बे-सुध है सूरज घरों पर शाम का साया पड़ा है पिघलती चाँदनी बहती फिरे है अदन का नूर दिल में आ पड़ा है