गुलों की महक चाँद तारों की ख़ुशबू नज़र साथ लाई नज़ारों की ख़ुशबू ज़मीं के क़दम चाँद से लौट आए मुक़द्दर न थी माह-पारों की ख़ुशबू सफ़ीना अभी सैल-ए-अमवाज में है मगर आ रही है किनारों की ख़ुशबू पस-ए-कारवान-ए-वफ़ा रह गई है त'अल्लुक़ के बिछड़े ग़ुबारों की ख़ुशबू चमन की फ़ज़ाओं में हूँ 'शान' लेकिन कहीं खो गई है बहारों की ख़ुशबू