कैसे कैसे दिल-नशीं ख़्वाबों के मंज़र ले गया मेरी आँखों से कोई नींदें चुरा कर ले गया आज वो यादों की दस्तावेज़ झूटी हो गई कोई इस बस्ती के नक़्शे से मिरा घर ले गया चाँदनी रातों से वाबस्ता थीं बज़्म-आराईयाँ चाँद क्या डूबा कि यादों का मुक़द्दर ले गया मुद्दतों से हैं उड़ानें एक ही मंज़र में क़ैद नोच कर जब से वो मेरी सोच के पर ले गया आइनों से दूर वस्फ़-ए-आइना-दारी को 'शान' लोग कहते हैं कि कोई आइना-गर ले गया