दिल में जब शो'ला-ए-एहसास मचल जाता है मोम की तरह से पत्थर भी पिघल जाता है कैसे कह दूँ कि ये सूरज है उजालों का अमीं शाम होते ही अँधेरों में जो ढल जाता है चंद क़तरों की मिरे दोस्त हक़ीक़त क्या है ज़र्फ़ वाला तो समुंदर भी निगल जाता है क्या ज़रूरी है कि शो'लों को हवा दी जाए जिस को जलना है वो फूलों से भी जल जाता है ये सियासत का है बाज़ार यहाँ पर यारो खोटा सिक्का भी खरे दामों में चल जाता है वक़्त के साथ बदल जाते हैं चेहरे 'गुलशन' लोग कहते हैं कि आईना बदल जाता है