गुलशन-ए-लाला-ज़ार क्या मौसम-ए-ख़ुश-गवार क्या जिस की बहार आप हैं उस के लिए बहार क्या रुक तो नहीं गई कहीं गर्दिश-ए-रोज़गार क्या तुझ को सुकूँ से वास्ता ऐ दिल-ए-बे-क़रार क्या सीना-ए-दाग़-दार देख दीदा-ए-अश्क-बार देख दिल की मिरे बहार देख शो'बदा-ए-बहार क्या राह नई बनाए जा तेज़ क़दम उठाए जा शौक़-ए-तलब बढ़ाए जा फ़िक्र-ए-मआल-ए-कार क्या ख़ौफ़ है फिर न कुछ ख़तर इश्क़ अगर है राहबर हो के क़रीब-तर गुज़र फ़ित्ना-ए-रोज़गार क्या अहल-ए-चमन ही जब हमें भूल गए तो हम-नशीं सहन-ए-चमन की याद क्यों तज़्किरा-ए-बहार क्या शौक़-ओ-तलब की राह में मंज़िल-ए-अश्क-ओ-आह में ला न सकी उन्हें तो फिर गर्दिश-ए-रोज़गार क्या क़िस्मत-ए-ग़म बदल गई दिल के नसीब जाग उठे अफ़्सूँ अब उन से कीजिए शिकवा-ए-इंतिज़ार क्या