गुलशन में बड़े ज़ोर का तूफ़ान उठा है जब भी कोई फूलों का निगहबान उठा है दुनिया के बदलने का फ़रिश्ते नहीं आए जब जब भी उठा है कोई इंसान उठा है सीने के लिए दामन-ए-गुल फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में हर बार कोई चाक-गरेबाँ उठा है मैं इस के सिवा कुछ नहीं कहता मिरे साक़ी 'शारिब' तिरी महफ़िल से पशेमान उठा है